देव उठते ही गूंजने लगी शहनाईयां



मण्डप वेदी सजाने सज गया बाजार 
मुरैना। चार माह पूर्व देवशयनी एकादशी से विश्राम कर रहे भगवान विष्णु देवोत्थान एकादशी पर शुक्रवार को जागे। उनके जागने के साथ ही लोकमंगल से जुड़े लंबित कार्यों को निपटाने का दिन शुक्रवार से ही 4 महीनो से मांगलिक आयोजनों पर लगा पारम्परिक विराम हट गया। तुलसी के पौध के चारों और मण्डप वेदी सजाने के लिए प्राचीनकाल से गन्ना का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस परम्परा का निर्वाह हर घर में किया जाता है। इसके लिए बाजार में आस पास के गावों से किसान व व्यापारी गन्ना बेचने के लिए आये। शहर में विभिन्न जगह शुक्रवार को गन्ना व्यापारी गन्ना बेचते नजर आए। जहां श्रद्धालू गन्ना खरीदने के लिए काफी तादाद में देखे गए। 
भगवान के विश्रामकाल का समय समाप्त होने पर शुक्रवार को तुलसी पूजा की परम्परा निभाई गई। माता तुलसी व भगवान विष्णु स्वरूप सालिगराम का विवाह घर-घर में संपन्न किया गया। तुलसी पूजा के साथ ही विवाह मुहूर्तों की शुरूआत होने से ही शहनाईयां गंूजने लगी है। वहीं जिन परिवारों में कन्याएं नहीं हैं उन दम्पत्तियों ने तुलसी लक्ष्मी स्वरूपा को कन्या मानकर उनका विवाह सालिगराम से सम्पन्न कराया। उल्लेखनीय है कि चातुर्मास के बाद विवाह के शुभ मुहूर्त की शुरूआत तुलसी पूजा के साथ होती है। तुलसी पूजा को अभूज मुहूर्त कहा गया है और बिना मुहूर्त देखे विवाह सम्पन्न कराया जा सकता है। साथ ही हिन्दू धर्म में कन्या दान को महादान की संज्ञा दी गई है। इसलिए तुलसी को बेटी मानकर घर-घर में विवाह कराया गया। धार्मिक परम्परा के अनुसार एकादशी को देवगणों को मान-मनुहार करते हुए आदर सत्कार के साथ जगाया गया तथा उन्हें नई सब्जियों और ऋतु फलों सहित सत्र के नए अनाजों का नैवेध भी अर्पित किया गया। 
मण्डप वेदी सजाने सज गया बाजार 
तुलसी के पौध के चारों और मण्डप वेदी सजाने के लिए प्राचीनकाल से गन्ना का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस परम्परा का निर्वाह हर घर में किया जाता है। इसके लिए बाजार में आस पास के गावों से किसान व व्यापारी गन्ना बेचने के लिए आये। शहर में विभिन्न जगह शुक्रवार को गन्ना व्यापारी गन्ना बेचते नजर आए। जहां श्रद्धालू गन्ना खरीदने के लिए काफी तादाद में देखे गए।


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