सपनों का सौदागर
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का शुक्रवार को निधन हो गया। 74 वर्षीय जोगी को कार्डियक अरेस्ट के बाद अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। 9 मई को सुबह करीब 10-11 बजे के बीच अजीत जोगी तैयार होने के बाद अपने लॉन में व्हीलचेयर के माध्यम से टहल रहे थे। उस दौरान गंगा इमली भी खाए थे जिसके बाद उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को श्री नारायणा अस्पताल के डॉक्टरों की टीम लगातार मॉनिटर कर रहे थे। हालांकि उनके ब्रेन की एक्टिविटी बेहद कम थी। 27 मई की रात उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ था। डॉक्टरों की टीम ने काफी कोशिशों के बाद उनकी स्थिति कंट्रोल की गई थी। लेकिन शुक्रवार को उनकी तबीयत और बिगड़ी तथा उनका निधन हो गया। बिलासपुर के पेंड्रा में जन्मे अजीत जोगी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद पहले भारतीय पुलिस सेवा और फिर भारतीय प्रशासनिक की नौकरी की। बाद में वे मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सुझाव पर राजनीति में आए। वे विधायक और सांसद भी रहे। बाद में एक नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ बना तो राज्य का पहला मुख्यमंत्री अजीत जोगी को बनाया गया। एक राजनेता से अलग छवि बनाते हुए अजीत जोगी ने अपनी पहचान लेखक के तौर पर 'दा रोल ऑफ डिस्ट्रीक कलेक्टरÓ और 'एडमिनिस्ट्रेशन ऑफर पेरीफेरल एरियाजÓ जैसी किताबें भी लिख चुके है। इतना ही नहीं यह भोपाल के मौलाना आजाद कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडेलिस्ट रहे। साथ ही आईएएस के तौर पर इन्होंने 1981-85 तक इंदौर के जिला कलेक्टर के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। जोगी को तेजतर्रार युवा जिलाधिकारी भी कहा जाता है। आपातकाल के बाद के दिनों में मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल के जिले शहडोल में उनकी जिलाधिकारी के तौर पर पोस्टिंग हुई। उनकी इमेज स्मार्ट अफसर की थी। साथ ही कविताएं लिखने वाले और साहित्य प्रेमी अफसर की भी। तब उनकी रचनाएं धर्मयुग में प्रकाशित होती थीं जिसने अपने काम और प्रशासनिक फैसलों से जनता के बीच अच्छी इमेज बना ली। वो अजीत प्रमोद कुमार जोगी थे, जिन्होंने डीएम के तौर पर कई अच्छे कदम उठाए। वो तेज काम करने वाले डीएम माने जाते थे। उस समय मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार थी। कहा जाता था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश जोशी उन्हें पसंद करते हैं। हालांकि जोगी ने बाद में निष्ठाएं इतनी तेजी से बदलीं कि उन्हें जानने वाले भी हैरान रह गए। कहा जाता है कि अर्जुन सिंह के करीबी होने से ही वो जिलाधिकारी से सीधे राज्यसभा सांसद बने। 1986 में कांग्रेस को मध्य प्रदेश से एक काबिल व्यक्ति की तलाश थी जो अनुसूचित जाति या जनजाति का हो और जिसे राज्यसभा में भेजा जा सके। अर्जुन सिंह के कहने पर तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह उन्हें लेकर राजीव गांधी के पास लेकर गए। चंद लम्हों की मुलाकात में उनके नाम पर मुहर लग गई। वैसे इसके पीछे एक रोचक किस्सा है, जो छत्तीसगढ़ के पत्रकार अक्सर सुनाते हुए मिल जाएंगे। किस्सा कुछ यों है। जिन दिनों जोगी रायपुर में कलेक्टर हुआ करते थे, उन्हीं दिनों राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस के पायलट थे। संयोग था कि उनका विमान कभी-कभी रायपुर भी आता था। कलेक्टर का स्थाई आदेश था कि जिस दिन पायलट के रूप में राजीव गांधी का नाम आए, उन्हें पहले सूचना मिल जाए। नियत समय पर कलेक्टर जोगी घर से चाय नाश्ता लेकर हाजिर होते थे। जब 1986 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में पहुंचाया तो वो लगातार दो कार्यकाल तक राज्यसभा सदस्य बने रहे। इस दौरान कांग्रेस की अलग अलग कमेटियों और पदों पर काम करते रहे। 1998 में उन्होंने पहली बार रायगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। सियासत में अपनी चालें और गोटियां उन्होंने एकदम सही तरह से खेलीं। इसका उन्हें लगातार फायदा मिला। जैसे ही छत्तीसगढ़ को नया राज्य बनाया गया। जोगी उसके पहले मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि विवादों के साथ उनका नाता भी तभी जुडऩे लगा। विवादों की फेहरिश्त लंबी होने लगी। उनकी प्रशासनिक क्षमता और नेतृत्व की लोग तारीफ करते थे लेकिन वो ऐसे शख्स भी हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि वो अपना काम निकालने और फायदा देने वालों के करीब आने में माहिर हैं। छत्तीसगढ़ का हर व्यक्ति अक्सर अपने मान सम्मान के लिए बोलता है, छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। ऐसे राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी राजनीति में सबसे आगे की लाइन में गिने जाते रहे हैं। अजीत जोगी को लोगों ने सपनों का सौदागर भी कहा है। जोगी ने एक बार खुद को सपनों का सौदागार बताया भी था। वर्ष 2000 में अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के चीफ मिनिस्टर बने। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए उन्होंने कहा था, हां, मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं।