आखिर क्यों भाग जाते हैं युवराज राहुल ?
शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत, मै राहुल गांधी को न तो युवराज मानता हों और न वे युवराज हैं ,लेकिन वे देश में रहें तो मुसीबत और देश में न रहें तो मुसीबत .भाजपा एक तरफ देश को कांग्रेस मुक्त देखना चाहती है और दूसरी तरफ कांग्रेस के नाकाम माने जा चुके नेता राहुल गांधी के देश से बाहर जाते ही हो-हल्ला मचने लगती है.देश का गोदी मीडिया राहुल गांधी की विदेश यात्रा को बहस का मुद्दा बनाकर अपने जाने कितने घंटे मुबाहिसे में बर्बाद कर देता है .
कांग्रेस के स्थापना दिवस पर ये पहला मौक़ा था जब पार्टी की शीर्ष नेता श्रीमती सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी पार्टी मुख्यालय में ध्वजारोहण के लिए मौजूद नहीं थे. श्रीमती सोनिया गाँधी सम्भवत:अस्वस्थ्य हैं और राहुल गांधी विदेश चले गए हैं.इस मौके पर केवल श्रीमती प्रियंका वाड्रा मौजूद थीं. राहुल की गैर मौजूदगी देश में बहस का मुदा बन गयी. जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गयीं .कोई बोला राहुल को नानी याद गयीं तो किसी ने कहा कि वे नया साल मनाने कहीं गए हैं .अब राहुल कहाँ गए हैं ,इसकी जांच के लिए सरकार चाहे तो कोई आयोग बना सकती है. राहुल को नोटिस देकर पूछ सकती है कि आप बिना बताये बाहर चले कैसे गए ?
राहुल गांधी लगातार दम तोड़ती कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं लेकिन भाजपा जब राहुल की चिंता करती है तो हैरानी होती है.क्या भाजपा के महाबली राहुल को भी भाजपा में शामिल करने के लिए प्रयत्नशील हैं .पिछले कुछ वर्षों में हमने यानि आप सभी ने देखा होगा कि राहुल के आचरण में वो गंभीरता नहीं है जिसकी अपेक्षा उनसे की जाती है .राहुल के इस फक्क्ड़ और अख्खड़ स्वभाव से कांग्रेस के साथ भाजपा भी आजिज है.राहुल ने संसद में गंभीर दिखाई देते हैं और न सड़क पर वे कभी अचानक प्रधानमंत्री को जादू की झप्पी दे डालते हैं तो कभी आँख दबाकर कोई इशारा कर देते हैं जो शायद राजनीति में अप्रचलित है
राहुल की विदेश यात्राओं की टाइमिंग पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। आपको याद होगा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष फरवरी 2020 में विदेश दौरे पर थे। बीजेपी ने खूब हो-हल्ला मचाया था कि राहुल गांधी इटली गए थे। उस समय इटली दुनिया में कोविड-19 का हॉटस्पॉट था। बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने कहा था, "इटली के कई लोग वायरस पॉजिटिव पाए गए हैं और ऐसे में राहुल गांधी की भी जांच होनी चाहिए।" सांसद हनुमान बेनीवाल ने संसद में यह मुद्दा उठाया था। बाद में कांग्रेस ने कहा कि राहुल की 29 फरवरी को स्क्रीनिंग हुई थी और वह कोविड फ्री हैं।
पता नहीं क्यों राहुल की तुलना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से की जाती है ,? एक तरफ जहां नरेंद्र मोदी अपना जन्मदिन 'सेवा दिवस' के रूप में मनाते हैं, तो दूसरी तरफ राहुल विदेश में जन्मदिन मनाते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर्फ 44 सीटों पर सिमटने के बाद राहुल, जून 2014 में विदेश चले गए थे। 2015 की शुरुआत में राहुल करीब दो महीने तक देश से बाहर रहे। वह वियतनाम, कम्बोडिया, थाइलैंड के अलावा म्यांमार भी गए थे। अप्रैल 2015 में लौटे राहुल ने 19 जून 2015 को अपना बर्थडे दिल्ली में मनाया था। मगर अगले ही दिन, वे मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी के साथ विदेश चले गए। सभी 10 दिन बाद लौटकर आए। जून 2016 में राहुल ने अपना जन्मदिन तुर्की में मनाया। 2017 में इटली जाकर नानी संग बर्थडै मनाया।
राहुल कब,कहां जाएँ ये उनका निजी मामला हो सकता है ,लेकिन भाजपा इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाये रखती है ,ताकि देश समझे कि राहुल कितने लापरवाह नेता हैं .पिछले साल महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राहुल मतदान से कुछ समय पहले विदेश दौरे पर रवाना हो गए थे। बीजेपी ने इसे लेकर राहुल पर खूब हमला बोला था। जिसके बाद पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्विटर पर लिखा था कि 'किसी के निजी जीवन को सार्वजनिक जीवन के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।"
मुझे याद है कि राहुल मार्च 2018 में भी इटली जा चुके हैं। कहा जाता है कि तब वह अपनी नानी को 'सरप्राइज' देने गए थे। उन्होंने ट्विटर पर ऐलान करते हुए लिखा था कि उनकी नानी 93 साल की हैं और वे होली पर उन्हें सरप्राइज देने जा रहे हैं। राहुल ने लिखा था कि वे अपनी नानी को गले लगाने के लिए बेताब हैं। इसके बाद उन्होंने मलेशिया और सिंगापुर की यात्रा भी की थी।आपको याद दिला दूँ कि दिसंबर 2016 में राहुल गांधी नए साल का जश्न मनाने विदेश गए थे। उस वक्त अमरिंदर सिंह दिल्ली में डेरा डाले हुए थे ताकि राहुल लौटें और टिकट वितरण को अंतिम रूप दें। पंजाब के अलावा गोवा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले थे। राहुल दिसंबर-जनवरी के बीच 10 दिन तक विदेश में रहे।
लगता है जैसे राहुल को विदेश यात्राओं की बीमारी है.बीमारी तो प्रधानमंत्री को भी है लेकिन उन्होंने बीते दस महीने में गजब का संयम दिखाया है. वे विदेश तो दूर दिल्ली की देहलीज पर बैठे किसानों से मिलने तक नहीं गए हाँ,काशी और कच्छ ने उन्हें अपने पास जरूर बुला लिया .मेरी निजी मान्यता है कि किसी भी नेता को जनता के बीच ज्यादा से ज्यादा रहना चाहिए. राहुल गांधी की उपस्थिति राजनीति में अतिथि कलाकार जैसी होती है. वे जहाँ जरूरत होती है वहां खड़े दिखाई देते हैं लेकिन अगले ही पल अदृश्य हो जाते हैं .आज देश में जब किसान आंदोलन एक राष्ट्रीय मुद्दा है तब राहुल को विदेश नहीं जाना चाहिए था .
किसान आंदोलन हालांकि राजनीति से दूर है लेकिन फिर भी विपक्ष पर इस आंदोलन के जरिये किसानों को उकसाने का आरोप तो लगाया ही जा रहा है .ऐसे में जब तक आंदोलन का समापन नहीं हो जाता तब तक राहुल गांधी की देश में मौजूदगी अनिवार्य और अपरिहार्य भी है .अब राहुल गांधी का परामर्शदाता कौन है ये राहुल जाने ,किन्तु एक आम आदमी की हैसियत से मुझे लगता है कि राहुल गांधी को अपने स्वभाव में कुछ न कुछ तब्दीली करना चाहिए .यदि उन्हें राजनीति रास नहीं आती तो वे साफ़ कहकर राजनीति से अलग हो सकते हैं .
कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है ..उनका काम प्रियंका कर ही रही हैं. सोनिया जी की पारी अब समाप्त है .जो भी नया नेता होगा वो सोनिया जी से आशीर्वाद लेकर अपना काम चला सकता है .राहुल को सोचना चाहिए कि उनकी गैर मौजूदगी से कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा को भी अच्छा नहीं लग रहा है ,अच्छा लग भी नहीं सकता .क्योंकि कांग्रेस विहीन देश में भाजपा अकेले करेगी क्या ? विचारधारा के नाम पर देश में अब कांग्रेस और भाजपा ही असल प्रतिस्पर्धी हैं. वामपंथ तो किनारे पर खड़ा होकर राजनीति कर रहा है एक आदर्श के रूप में .
@ राकेश अचल, लेखक: वरिष्ठ पत्रकार हैं।