राजनीति का टीका और टीके की राजनीति
@ राकेश अचल, लेखक:- वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक हैं।
हिन्दुस्तान में किसी बीमारी का पहला टिका लगे दो सौ साल होने में एक साल बाक़ी है लकिन टीके की राजनीति एकदम नवजात है .देश में तमाम विषाणुओं से होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके बनते और इस्तेमाल किये जाते रहे हैं लेकिन टीके को लेकर राजनीति देश में पहली बार हुई जब बिहार विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा ने इस अजन्मे टीके को एक आश्वासन के रूप में भुनाने की कोशिश की .अब देश में कोरोना वायरस का ये टीका राजनीति के साथ १६ जनवरी को प्रयोग में लाया जा रहा है. देश को इसका स्वागत करना चाहिए .
कहते हैं कि कोई दो सौ साल पहले 1802 में मुंबई में एक 3 वर्षीय लड़की को चेचक का टीका दिया गया था, जिससे वह भारत में टीका लेने वाली पहली भारीतय बनी। ब्रिटिश सरकार ने सफलता का दावा किया और इसके बजाय केवल टीकाकरण की सिफारिश करने के लिए पिछली प्रौद्योगिकी के उल्लंघन के उपयोग को रोकना शुरू किया।लेकिन स्थिति जटिल थी क्योंकि टीके दीर्घकालिक समाधान थे, लेकिन जिस तरह से ब्रिटिश राज ने उन्हें पेश किया जिस तरह से लोग पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी कार्यों, और धर्म तक पहुंच को बाधित कर रहे थे.बचपन में हमें भी ऐसा ही एक टीका लगाया गया था जिसके निशान आज भी हमारे बाजू पर मौजूद हैं .लेकिन शायद इस टीके ने ही हमें कुरूप होने से बचाया और आज तक एक बड़ी व्याधि से बचाये रखा .
विषाणुजनित बीमारियों के टीके लम्बी शोध के बाद इस्तेमाल के लायक बन पाते हैं ,इनका मकसद ही व्यक्ति को स्वस्थ बनाये रखना होता है ,इसलिए टीका बनाने वाले वैज्ञानिकों के मन में टीका बनाते समय कोई राजनीति नहीं होती ,लेकिन टीका बनाने के लिए जो संसाधन लगते हैं वे राजसत्ता और राजनीति के बिना जुटाए भी नहीं जाते इसलिए शायद पहली बार ये टीके भी राजनीति के शिकार हो गए हैं .भारत में वैश्विक टीकाकरण कार्यकर्म के तहत पहले से 12 तरह के टीके बच्चों को लगाए जाते हैं. बाक़ी के लिए भी लगभग हर विषाणुजनित बीमारी के टीके उपलब्ध हैं ,बावजूद इसके हमारे यहां डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, पोलियो व खसरा कभी-कभी सर उठा ही लेता है .
भारत में कुछ बीमारियां देशी विषाणुओं के कारण होती हैं लेकिन बहुत सी बीमारियां विदेशों से हवाई जहाजों या जलपतों में स्वर होकर आ जाती हैं,जैसे इस बार बुहान से कोरोना आ गया. इस कोरोना के कारण सिर्फ भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया हलकान है ,लेकिन अब इसका टीका आ गया है. पहले भारत में आने वालों को विश्व स्वास्थ्य संगठन विभिन्न परिस्थितियों में पर्यटकों के लिए विभिन्न टीकों की सलाह देता रहा है।इन टीकों में डिप्थीरिया वैक्सीन, टेटनस वैक्सीन, हेपेटाइटिस ए का टीका, हेपेटाइटिस बी वैक्सीन, ओरल पोलियो वैक्सीन, टाइफाइड वैक्सीन, जापानी इंसेफेलाइटिस, मेनिंगोकोकल वैक्सीन, रेबीज़ का टीका और येलो फीवर टीका शामिल हैं।अब कोरोना का टीका भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गया है
भारत में कोरोना पर प्रहार के लिए टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी से शुरू होगा. सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना का टीका लगाया जाएगा. इसके बाद 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन दी जाएगी. देश में कोरोना की स्थिति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें टीकाकरण अभियान को शुरू करने पर फैसला लिया गया.बैठक में निर्णय लिया गया कि सबसे पहले वैक्सीन स्वास्थ्य कर्मियों और अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को लगाई जाएगी, जिनकी अनुमानित संख्या लगभग 3 करोड़ है. इसके बाद 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और इससे कम उम्र के उन लोगों को टीके लगेंगे जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसे लोगों की संख्या करीब 27 करोड़ है.भारत सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशिल्ड और भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी है.
अच्छी बात ये है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर की गयी राजनीति के बाद भी फिलहाल इसका वैसा विरोध नहीं हुआ है जैसा कि किसान कानूनों का हो रहा है. आपको याद होगा कि देश में महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस से अब तक 1.50 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, 1 करोड़ 4 लाख से ज्यादा देश में कुल मामले हैं. इसमें से 2 लाख 21 हजार सक्रिय मामले हैं और 1 करोड़ से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं.ये तब है जब लोग आज भी इस संक्रमण को लेकर बहुत ज्यादा एहतियात बरतने में लापरवाही कर रहे हैं .
कोरोना वैक्सीन या टीके को लेकर राजनीति करने वाली भाजपा ने समय रहते अपनी गलती सुधार ली.समाजवादी अखिलेश यादव ने तो ये टीका लगवाने से ही इंकार कर दिया .कायदे से ये टीका सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री लगवाते तो देश में एक बेहतर सन्देश जाता और टीके की विश्वसनीयता और अधिक बढ़ती लेकिन 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे 'वाला मामला है. भाजपा शासित अनेक मुख्यमंत्रियों तक ने फिलहाल ये टीका लगवाने से इंकार कर दिया है .आज जरूरत इस बात की है कि 16 जनवरी से शुरू हो रहे इस महत्वपूर्ण टीकाकरण अभियान को राजनीति से दूर रखा जाये .संयोग से हमारे पास टीका उत्पादन और टीकाकरण का बेहतर अनुभव है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि हम दुनिया के दूसरे मुल्कों के बजाय ज्यादा प्रभावी तरिके से इस अभियान को कामयाब बना पाएंगे .
कोरोना से बचाव के लिए ये टीका लगवाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस बीमारी ने हमारे निजी स्वास्थ्य के साथ ही देश के आर्थिक,सामाजिक और राजनीति स्वास्थ्य को भी गंभीर क्षति पहुंचाई है .ये टीका भविष्य की जरूरत है और इसे यही मानकर स्वीकार किया जाना चाहिए .टिका भरोसेमंद बना रहे ये जिम्मेदारी सरकार की है.हमारी जिम्मेदारी है की हम इस टीके को लेकर व्यर्थ की अफवाहों से सावधान रहें .न अफवाहें फैलाएं और न फैलने दें.