वार्डन बनकर क्या करेंगे सिंधिया जी ?

 


राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया संवेदनशील व्यक्ति हैं शायद इसीलिए वे अपने गृहनगर ग्वालियर के बिगड़े यातायात को सुधारने के लिए ' ट्रेफिक वार्डन ' बनने को तैयार हैं .उनकी मंशा स्वागत योग्य और अनुकरणीय है लेकिन सवाल अकेले ग्वालेऔर का नहीं है. समूचे देश की यातायात व्यवस्था सियासत की तरह अराजक हो गयी है ,इसलिए जरूरत इस बात की है कि संसद से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक का हर निर्वाचित सदस्य  'वार्डन ' बने,न सिर्फ यातायात  सुधारने के लिए बल्कि सियासत  की दशा सुधारने के लिए .

भारत में सड़कें कम और वाहन ज्यादा हैं. सड़कें भी तकनीकी तौर पर सही नहीं हैं इसलिए भी यातायात अराजक स्थितयों का शिकार हो चुका है .देश में आबादी के अनुपात में वाहन बहुत कम हैं. दो साल पुराने आंकड़ों के हिसाब से देश में कोई 30 -31  करोड़ पंजीकृत वाहन हैं जो सड़कों पर चल रहे हैं. दो साल में मुमकिन है कि ये संख्या और बढ़ गयी हो ,यानि कुल आबादी यदि 130  करोड़ भी मान ली जाये तो अभी देश की आधी से अधिक आबादी बिना वाहन के है लेकिन सड़क पर चलने वाले वाहन सबसे ज्यादा जानलेवा भारत में ही हैं .

ग्वालियर समेत देश और प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों में सालाना यातायात सुधरने के लिए सलाहकार समितियों की बैठकें होतीं हैं,इन बैठकों में बड़े ही मनोहर फैसले होते हैं लेकिन अमल शायद ही किसी फैसले पर हो पाता हो .हजार बार ध्यान आकर्षित करने के बाद मध्यप्रदेश में यातायात प्राथमिक शिक्षा का विषय नहीं बनाया जा सका. सैकड़ों कोशिशों के बावजूद ग्वालियर में जहाँ यातायात विभाग का प्रदेश मुख्यालय हैं वहां ट्रेफिक पार्क की स्थापना नहीं हो पाई .आम जनता में ट्रेफिक के नियमों का पालन करने की प्रवृत्ति  न के बराबर है लेकिन ट्रेफिक तोड़ने वालों के खिलाफ आजतक निर्णायक कार्रवाई नहीं हो पाई क्योंकि हर काम में राजनीतिक दखल है .

अराजक यातायात व्यवस्था का सबसे बड़ा कारण घटिया सड़कें हैं ,सड़क निर्माण की तकनीक में आजतक कोई सुधर नहीं हुआ.हमारे यहां बनने वाली सड़कें ट्रेफिक की जरूरत के हिसाब से नहीं नहीं ठेकेदार और इंजीनियर के लाभ के हिसाब से बनाई जाती हैं.सड़कों की इंजीनियरिंग सुधरे बिना सिंधिया या नेताओं का पूरा कुनबा भी ट्रेफिक वार्डन बनकर ट्रेफिक   नहीं सुधार सकता .अकेले ग्वालियर शहर की ही बात ले लें तो यहाँ पूरे शहर में एक भी स्वचालित यातायात संकेतक की पोजिशनिंग और टाइमिन सही नहीं है .जहाँ जरूरी है वहां संकेतक लगते तो ठीक हैं लेकिन जहाँ जरूरी नहीं हैं वहां भी इन्हें लटका दिया गया है भले ही ये कभी काम करते हों या न करते हों .

सिंधिया जी को ट्रेफिक वार्डन बनने से पहले ट्रेफिक को अराजकता से मुक्त करने के लिए यातायात की शिक्षा,तकनीक और नियमों के प्रवर्तन को सुधारने पर जोर देना चाहिए ,उन्हें देखना चाहिए कि इन तीनों बिंदुओं पर शहर के स्थानीय प्रशासन ने बीते दस वर्षों में क्या किया ?अब तो ग्वालेऔर स्मार्ट सिटी परियोजना का अंग है ,क्या सिंधिया स्थानीय नगर निगम,ग्वालियर विकास प्राधिकरण,विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी के मुख्य कार्यपालन अधिकारीयों से पूछ सकते हैं कि शहर में बिना जरूरत कितने बीएस अड्डे बनाये गए ? कितने कैमरे लगाए गए और उनमें  से कितने कार्यरत हैं?

शहरों के अराजक यातायात को ट्रेफिक वार्डन नहीं सुधार सकते,इसमें सुधार व्यवस्था में परिवर्तन और आवश्यक नियमन से ही सम्भव हैं. हम शहर में एक सड़क को सख्ती के साथ एकांगी नहीं बना सके.एक बबाजार में व्यावहारिक पार्किंग प्रनन्ध नहीं कर सके .हरा सारा ध्यान अवैध वसूली और क़ानून का पालन करने वाले वाहन धारकों की हजामत बनाने तक सीमित है .शहर में  किसी भी बैंक,शासकीय कार्यालय और व्यापारिक संस्थान की अपने उपभोक्ताओं के लिए पार्किं व्यवस्था नहीं है.सवाल ये है कि बिना आवश्यक पार्किं के ये संस्थान खोलने की इजाजत क्यों दी जाती है ?

सांसद सिंधिया को कभी अपने शहर की किसी बैंक,पोस्ट आफिस या दूकान पर नहीं जाना पड़ता,यदि वे आम आदमी की तरह कभी महाराज बाड़ा पर स्थित भारतीय स्टेट बैंक या पोस्ट आफिस या गांधी मार्केट की किसी दुकानमें जाना चाहें तो उन्हें अपनी कार तो छोड़िये दो पहिया वाहन रखने की जगह नहीं मिलेगी हाँ जगह खोजकर पार्किंग करने पर पुलिस का डंडा जरूर खाना पड़ सकता है .सिंधिया जी ने भारत के बाहर की दुनिया देखी है. वे अमेरिका में पढ़े हैं इसलिए उनसे अपेक्षा की जाए सकती है कि वे पूरे प्रदेश की नहीं तो कम से कम अपने शहर की यातायात व्यवस्था को तो अराजक बनाने से रोकने की एक गंभीर कोशिश करें .

अराजक यातायात को सुधारने के लिए धन से ज्यादा जरूरत मन की है. सबसे पहले कानूनों पर अम्ल,दुसरे इंजीनियरिंग में सुधार ,तिस्सरे शहर में किसी भी नए निर्माण और संस्थान को तब तक इजाजत न दी जाये जब तक कि उसके पास पार्किंग की पर्याप्त सुविधा न हो. इस काम में राजनितिक हस्तक्षेप,प्रशासनिक बेईमानी के लिए कोई गुंजाइश न हो.ये सब शहर को विकसित करने के समय सुनिश्चित किया जाना चाहिए .इस समय सारा विकास पहले से घनीभूत आबादी के बीच किया जा रहा है. अब इस विकास को चतुर्दिक करना होगा .पूरब,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण चरों दीक्षाओं में विकास की एक सम्यक योजना बनाये बिना ये सम्भव नहीं है. शहर का विकास नियोजन से होना चाहिए न कि बिल्डरों और भूपतियों की मर्जी से .

एक हकीकत ये है कि भारत में जगह की कमी है इसलिए सर्कार को ही जमीन अधिग्रहण  कर विकास का काम अपने हाथ में लेना चाहिए,बाद में भले उसे नई हाथों में सौंप दिया जाये.योजना बनाने में हमर सरकारी अमले दक्ष नहीं हैं .वे कागजी योजनाएं बनाते हैं लेकिन उन पर अमल नहीं करा पाते. आजतक कोई शहर योजनाबद्ध तरिके से विकसित हुआ हो तो खोज कर लीजिये .कम से कम ग्वालियर का विकास तो आज भी अराजक है ,इसलिए न नया ग्वालियर आजतक बसा और न पुराने का सुधार हुआ .अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, ग्वालेऔर के पास सिंधिया जैसे संवेदनशील जनप्रतिनिधि हैं जो कुछ नया कर सकते हैं .हमें चाहिए कि हम सब मिलकर अपने शहर की फ़िक्र करें और भावी पीढ़ी के लिए एक नियोजित शहर छोड़ें. अभी हम शहर की हरियाली खा चुके हैं,फुटपाथ हमारे पास न बाजारों में हैं और न आवासीय इलाकों में .जो नए आवासीय इलाके भी विकसित हो रहे हैं उनमें भी पार्किंग,फुपाठ और हरियाली के अलावा जलमल निकासी तथा यातायात प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. हाँ शिवपुरी लिंक रोड पर बनाई जा रही एक आवासीय कालोनी में इसका ख्याल जरूर रखा गे है लेकिन उसे भी नगर नियोजन विभाग स्वीकृति नहीं दे रहा क्योंकि उसे रिश्वत चाहिए 

@राकेश अचल, वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक है

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