पुलिस में पदोन्नति का गोरखधंधा

 पुलिस मुख्यालय द्वारा दिनांक 10.02.21 को उच्च पद का पदनाम देने के लिए जारी की गई प्रक्रिया की प्रमुख कमियां-

1. वर्तमान में निरीक्षक के 800 पद खाली है, सिर्फ 10 साल की सेवा पूरी करने वालों को पदनाम देने पर उप निरीक्षक से निरीक्षक के लिए केवल 150 पद ही भरे जा सकेंगे और आगामी वर्ष में रिटायर होने वाले ।सैकड़ों विभागीय उप निरीक्षकों को कोई लाभ नहीं मिलेगा।

2. शासन की मंशा लगभग 18000 कर्मचारियों को उच्च पदनाम देने की थी, जिसकी बड़े जोर शोर से सभी प्रमुख अखबारों और मीडिया के माध्यम से घोषणा भी की गई थी, लेकिन नए निर्धारित नियम से निरीक्षक 150, उप निरीक्षक 500, सहायक उपनिरीक्षक 1000 और लगभग 1000 आरक्षकों के साथ कुल लगभग 2 से 3 हजार कर्मचारियों को ही इस प्रक्रिया का लाभ मिल पाएगा और हजारों कर्मचारी बिना प्रोमोशन मिले ही रिटायर हो जाएंगे जो कर्मचारियों के आक्रोश को और बढ़ाने का काम करेगा। पूरे देश में एक मात्र मध्य प्रदेश में ही विगत 5 सालों से प्रोमोशन पर रोक है, सुप्रीम कोर्ट के प्रोमोशन में आरक्षण को खारिज करने वाले आदेश से प्रभावित अन्य राज्यों ने कई वर्ष पूर्व से ही नए नियम बनाकर नियमित पदोन्नति प्रारंभ कर चुके हैं, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस संबंध में प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है

.3, शासन के मूल प्रोमोशन नियमों के आधार पर 6 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले उपनिरीक्षक को निरीक्षक के पद पर प्रोमोशन देने का प्रावधान है, लेकिन पुलिस मुख्यालय द्वारा कल जारी किए गए नियमों में 10 वर्ष की सेवा पूरी करने वालों को ही उच्च पदनाम दिया जाएगा । ऐसे उपनिरीक्षकों की संख्या बहुत कम होने से पूरे प्रदेश में केवल 150 उपनिरीक्षकों को ही निरीक्षक का उच्च पदनाम दिया जाएगा।

 पुलिस मुख्यालय के नए नियम के अनुसार इकाई प्रमुख किसी भी उच्च पदनाम प्राप्त कर्मचारी को बिना कोई सूचना या नोटिस के मूल पद पर पदवनत कर सकता है, क्या इससे भविष्य में छोटे कर्मचारियों को अपने वरिष्ठों की अनावश्यक प्रताड़ना और मानसिक दबाव नही सहन होगा साथ ही विभागीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं मिलेगा?

 4,प्रदेश सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका के भी शीघ्र निराकरण के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लटकाना चाहती है

5,केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों को पूर्व में ही मेमोरंडम के माध्यम से अवगत कराया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार को अपने कर्मचारियों को प्रोमोशन देने पर कोई रोक नहीं लगाई गई है, सरकार नए नियम बनाकर अपने कर्मचारियों को प्रोमोशन दे सकती है, लेकिन सरकार द्वारा छोटे कर्मचारियों को गुमराह किया जा रहा है

6,जिला न्यायालय भोपाल तथा अन्य कई केंद्रीय विभागों में सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका के निर्णय के अधीन रहते हुए अपने कर्मचारियों को कंडीशनल प्रोमोशन दिए है, तो फिर राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को उच्च पदनाम के मकड़जाल में उलझने के बजाए इसी आधार पर कंडीशनल प्रोमोशन क्यूं नही देना चाहती है।

लेखक:- आदर्श गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार, एवं प्रसिद्ध लेखक हैं.

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