वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज
श्रीधाम बृंदावन के वेजयंती आश्रम से
वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज कहते हैं कि:-
सबने विचार कर अनुभव कर बहुत खोज करने के बाद खूब विचार करने के बाद खूब संयम नियम के बाद ये निर्णय निकाला है एकमात्र साधन अगर कोई है तो हरेर्नामानुकीर्तनम्।। भगवान के नाम का आश्रय लेने से ही जगत का उद्धार सम्भव है। इससे ऊँचा साधन कुछ और नहीं हो सकता।
श्रीमनमहाप्रभु ने हरिनाम संकीर्तन किया जीवन पर्यन्त। और एक बात बिलकुल दावे के साथ कहते-
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।
कलौ नाश्तैव नाश्तैव नाश्तैव गतिरण्यथा।।
योगियों के सम्राट ने ये बात कही है- उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजन जगत सब सपना।। अगर सम्पूर्ण जीवन में एक घड़ी भी ध्यान पूर्वक समर्पण पूर्वक और पूर्ण निष्ठा पूर्वक अगर जीव ने व्यतीत कर ली श्रीठाकुरजी के श्रीचरणों में तो उसे परम पद की अवश्य प्राप्ति होती है।
एक कृष्ण नाम जीव के उतने पापों को नष्ट करने की सामर्थ्य रखता है जितने पाप करना जीव की सामर्थ्य नहीं है। पर हाँ वो कृष्णनाम कैसा हो? आँखों से अश्रु निपातन पूर्वक पूर्ण निष्ठा के साथ गौराङ्ग बलिते हबे पुलक शरीर पुलकित शरीर और कण्ठावरोध के साथ श्रीगुरु कृपा का अनुभव करते हुए श्रीगोविन्द के श्रीचरणों में पूर्ण निष्ठा के साथ अगर एक क्षण के लिए भी अगर पूर्ण समर्पण के साथ अवस्थित हो जाए पूरे जीवन में एक बार भी मन लग जाय तो उतना ही उसके कल्याण के लिए सहयोगी ही होगा। उसका उद्धार ही करेगा।
।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।