कथा और कृष्ण अभेद स्वरूप: वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज
वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज कहते हैं कि कथा और कृष्ण अभेद स्वरूप हैं। जैसे जल को शीत में रखो तो बरफ की तरह जम जाता है और ग्रीष्म में रखो तो पिघल कर के प्रवाहित होता है और अग्नि पर रखो तो वाष्प बनकर उड़ जाता है। ऐसे ही जब श्रीठाकुरजी के चिंतन की वो दिव्य धारा किसी वैष्णव के हृदय में भगवत् मिलन की दिव्यता की शीत की तरह उपस्थित होती है
तब वही प्रीति एक आकार लेकर प्रगट होती है वही तो श्रीराधारमण श्रीबांके बिहारी श्रीनाथ जी बनकर के प्रगट हो जाते हैं
और जब वक्ता इन स्वरूप को अपने हृदय में पधरा करके अपने हृदय में जल रहे कृष्ण विरहात्मक कृष्ण प्राप्ति कृष्ण प्राप्तव्य के उत्कण्ठा की अग्नि के ऊपर पधराता तब यही श्रीविग्रह वाष्प बनकर उनके शब्दों के झरोखों से प्रवाहित होते हैं तब माया में फँसे हुए जीव को कृष्ण प्रेम की बौछार से भिगो देते हैं। यही तो उसकी स्वरूप माधुरी है।
।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।