'फादर' का 'स्टेन' मंहगा पडेगा
'स्टेन' विषाणु यानि वायरस का हो या बुद्धि का कभी मरता नहीं है. उसे मारने की कोशिशें लगातार होती है ,किन्तु 'स्टेन' अपना रूप बदल-बदलकर सामने आता है और अपने शिकार की वो हालत करता है जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती .भारत इस समय तीन तरह के 'स्टेन ' से ग्रस्त है.एक स्टेन है कोविड-19 का और दूसरा है सत्ता के मदांध होने का और तीसरा स्टेन है इन सबके खिलाफ मनुष्यता के लिए लड़ने वाली बुद्धि का .84 साल के फादर स्टेन स्वामी तीसरे प्रकार के 'स्टेन' थे .सिस्टम ने उन्हें मौत की सजा दे दी लेकिन सिस्टम भूल जाता है कि बुद्धि का ' स्टेन ' कभी मरता नहीं है .बुद्धि का ' स्टेन ' मदांध सत्ता को समूल नष्ट करके ही शांत होता है .
मै आपको फादर स्टेन स्वामी की जीवनी पढ़वाकर बोर नहीं करूंगा ,लेकिन मेरी कोशिश होगी कि आप इस बात को समझें कि फादर स्टेन स्वामी को जिस तरह से सत्ता का प्रतिकार करने की वजह से जेल के भीतर मारा गया है वो लोकतंत्र के लिए,स्वतंत्रता के लिए और समूची मनुष्यता के लिए खतरा है .भारत की जेलों में रोजाना सैकड़ों लोग गुमनाम मौत मर जाते हैं. मरने वाले हर कैदी की मौत की एक मजिस्टीरियल जांच की औरपचारिकता होती है और पूरे मामले पर राख दाल दी जाती है और मरने वाले को ख़ाक में मिला दिया जाता है .ये हमारे सिस्टम की आदत में शुमार है .हमारा सिस्टम देश के आजाद होने के बाद भी अंग्रेजों के जमाने का क्रूर,नृशंस और अमानवीय सिस्टम है .
महाराष्ट्र में कोई तीन साल पहले शायद 2018 में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार किए गए समाजसेवी फादर स्टेन स्वामी का सोमवार को निधन हो गया. वो 84 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी. ज्यादा तबीयत खराब होने के कारण उन्हें होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सोमवार दोपहर बॉम्बे हाईकोर्ट को उनके निधन की जानकारी दी गई है.चूंकि फादर स्टेन स्वामी आम अपराधी नहीं थे इसलिए मजबूरी में जेल प्रशासन को ये जहमत उठाना पड़ी अन्यथा वे भी दुसरे आम कैदियों की तरह चुपचाप मिटटी के सुपुर्द कर दिए जाते.
एक पत्रकार होने के नाते मेरी स्मृति के हिसाब से फादर स्टेन स्वामी आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किये गए भारत के सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे . स्वामी को जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव भड़की हिंसा से जुड़े मामले में पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया था. स्टेन स्वामी को आतंकी घटनाओं की जांच करने वाली 'नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी' ने गिरफ्तार किया था. एनआईए ने स्वामी पर माओवादियों से संबंध होने के भी आरोप लगाए थे. साथ ही उनपर यूएपीए की भी कई धाराएं लगाई गई थीं..ध्यान रहे एनआईए केंद्र सरकार की एजेंसी है .
क्या आप यकीन कर सकते हैं कि एक किसान के घर जन्मे स्टेन स्वामी सोशलॉजी में एमए के करने के बाद तमिलनाडु में अपना गांव त्रिची छोड़कर बेंगलुरु स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में काम करते हुए झारखंड आकर यहां के आदिवासियों और वंचितों के लिए काम हुए आतंकवादी हो सकते हैं ? फादर स्टेन स्वामी ने शुरुआती दिनों में पादरी का काम किया. फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की. ये संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है
स्टेन स्वामी रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी चलाते थे. स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे. झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था.सरकार के खिलाफ बयान देना यदि आतंकवाद है तो फिर स्वामी को एनआईए की और से आतंकी कहने पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता ,लेकिन यदि सरकार के खिलाफ बोलना लोकतान्त्रिक अधिकार है तो फादर स्टेन स्वामी निर्दोष थे,उनकी जानबूझकर हत्या की गयी .और इसके लिए कोई एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि सत्ता और सिस्टम जिम्मेदार हैं .
फादर स्टेन स्वामी के बारे में एक पत्रकार के नाते यदि मै कुछ लिखूंगा तो मेरे तमाम मित्र मुझे भी वामी और शहरी नक्सली कहने से नहीं चूकेंगे ,लेकिन जब इस बारे में पिछले 20 साल से झारखण्ड में आदिवासियों की आवाज उठाने वाली संस्था आदिवासी अधिकार मंच के खूंटी जोन के प्रभारी आलोका कुजुर कुछ कहें तो उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए .
झारखण्ड में आदिवासियों से जुड़े तमाम आंदोलनों से लेकर फादर स्टेन स्वामी की रिहाई के लिए आवाज बुलंद करते रहे. स्वामी के निधन पर उन्होंने कहा-फादर एक निर्दोष 84 साल के बुजुर्ग जो पार्किंसन बीमारी से ग्रसित थे, ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता के साथ आएनाइए ने जो अमानवीय व्यवहार किया, वो चिंता का विषय है. फादर पर कोरेगांव के तहत जो केस हुआ वह फर्जी था. इस उम्र के व्यक्ति को जेल में रखना और आरोप सिद्ध नहीं कर पाना साबित करता है कि फादर पर झूठे आरोप लगाए गए थे. इस लिए हम सभी सामाजिक कार्यकर्ता यही मानते हैं कि केंद्र सरकार और एनआईए ने फादर स्टेन स्वामी की हत्या की.कुजूर की तरह देश में बहुत से लोग यही सोचते हैं ,लेकिन वे सबके सब शहरी नक्सली नहीं हैं .
इतिहासकार रामचंद्र गुहा शहरी नक्सली नहीं हैं लेकिन वे कहते हैं कि - "फादर स्टेन स्वामी ने अपना पूरा जीवन पिछड़ों, गरीबों के लिए काम करने में लगा दिया. उनका दुखद निधन एक न्यायिक हत्या का मामला है, इसके लिए गृह मंत्रालय और कोर्ट दोनों बराबरी से जिम्मेदार हैं.".
फादर स्टेन स्वामी 'फादर' भी थे और बौद्धिकता के ' स्टेन ' भी और स्वामी तो वे जन्मजात थे ही .ये तीनों तत्व ऐसे हैं जो कभी मरते नहीं. फादर अपने पुत्रों के रूप में मौजूद रहते हैं और स्टेन तो स्टेन ही ठहरा ..सरकार लगता है कि देश में फादर स्टेन स्वामी की मौत को लेकर सभ्य समाज में जो गुस्सा है वो नपुंसक गुस्सा है .कुछ मुठ्ठी भर संगठन,और लोग फादर की मौत पर स्यापा करेंगे लेकिन कोई उनकी जलाई मशाल को थामकर सीना खोलकर आगे नहीं चल सकेगा ,लेकिन ये सरकार और सिस्टम का भ्रम है .प्रतिकार का ' स्टेन' कभी नहीं मरता .हालाँकि उसे मरने के लिए तमाम इंतजाम सत्ता और सिस्टम की और से किये जाते हैं .प्रतिकार अजर -अमर भाव है .प्रतिकार यदि मरता होता तो न देश आजाद होता और न देश में लगाया गया आपातकाल कभी हटता .
अराजकता,सत्ता की हाथ ,अधिनायकवाद ,संकीर्णता,धर्मान्धता के खिलाफ प्रतिकार फादर स्टेन सवामी की मौत के बाद और तेज होगा .मै ये मांग बिलकुल नहीं करूंगा कि फादर के साथ बरती गयी अमानवीयता के लिए उनके जैसी ही सजा किसी को दी जाये लेकिन मै विचारवान आम लोगों से जरूर अपेक्षा करूंगा कि वे प्रतिकार के लिए फादर स्टेन स्वामी की ही तरह बलिदान करना सीखें ,अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो मदंश सत्ता और सिस्टम उन्हें जेल के भीतर क्या जेलों के बाहर अपने घरों में भी चैन से नहीं जीने देगा .फादर की तरह हाल के वर्षों में प्रतिकार की आवाज बने तमाम लोगों को यातो जेलों में ठूंस दिया गया या फिर कायरता पूर्वक उनकी हत्या कर दी गयी .नाम गिनाने की जरूरत अब नहीं है .मेरे पास फादर स्टेन स्वामी के लिए केवल विनम्र श्रृद्धांजलि है ,सो अर्पित करता हूँ .
@ राकेश अचल, वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक हैं।