साधन और साध्य का जोड़ा है: वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज
वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज कहते हैं किसा साधन और साध्य का जोड़ा है। इनमें से एक भी अगर चूकोगे तो माजरा बिगड़ जाता है। कहीं मात्र साध्य है साधन नहीं है तो बात खराब है और कहीं मात्र साधन साधन है साध्य नहीं है तो भी बात खराब है।
रावण के द्वारा सीता जी का अपहरण हुआ सीता भक्ति की स्वरूपा हैं राम भगवान हैं। ये कथा सूपर्णखा से शुरू हुई पर दोनों भाई बहनों ने भूल कर दी। बहन ने राम को चाहा पर सीता से द्रोह किया मतलब साध्य को चाहा पर साधन नहीं माना भगवान को चाहा पर भक्ति नहीं मानी। दूसरी तरफ रावण था उसने साधन को चाहा पर साध्य से द्रोह कर लिया।
जैसे माला तो करेंगे क्योंकि सब कर रहे हैं हमारी प्रतिष्ठा बढ़ रही है माथे पर तिलक तो लगाएंगे क्यों उसके ओट में उसके पर्दे में अपनी झूठ को छुपाया जा सके। साधन तो हम करेंगे वस्त्र तो हम पहनेंगे पर साध्य से हमारा मतलब नहीं है। ये सब तो हम कर रहे हैं पर लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति नहीं है और जो यश हो सकता है भोग हो सकता है प्रतिष्ठा कामनाओं की पूर्ति हो सकती है साधन तो है पर साध्य नहीं है
सूपर्णखा और रावण में यही भेद है। विभीषण इसीलिए इन सबसे आगे है कि उसके जीवन में साधन भी है और साध्य भी है। अगर तुम साधन और साध्य को अलग करोगे तो दोनों दुःखी हो जाएँगे। साधन है पर उसका लक्ष्य ईश्वर नहीं है तो साधन दुःखी हो जाएगा। माला तो बहुत अच्छी बनाई पर फूल ने भी माला ये सोचकर दी थी कि ये माला ईश्वर को पहनाएगा माला भी उदास हो गयी कहाँ ये भक्त बनकर भगवान को सजा सकता था और कहाँ कामी बनकर किसी कामिनी के केश को सँवार दिया। साधन भी रोते हैं
माला सबके हाथ में है पर इसकी जो खनक है वो बता देती है कि इसके मनके सरकाए क्यों जाते हैं। क्यों इसे बदला जाता है। ग्रंथ तो पढ़ते हैं हम पर ग्रंथ के पृष्ठ ही बता देते हैं कि इसको पढ़ने वाला व्यक्ति कैसा है
साधन और साध्य का यही संतुलन है। जब भी तुम साधन और साध्य को अलग करोगे ये दोनों दुःखी हो जाएँगे.. माला तो पकड़ी पर अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए। बिना साधन को कोई साध्य को पकड़ता है तो साध्य दुःखी हो जाता है.. साधन और साध्य का यही संतुलन है।
।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।