"अटल प्रोग्रेस वे" बनी चुनावी वैतरणी और चंबल बीहड़ की जमीन कॉरपोरेट्स को सौंपने का जरिया, बीहड़ की जमीन कॉरपोरेट्स के बजाय किसानों को मिले:किसान सभा




वर्ष 2013 -14 में पहली बार " चंबल एक्सप्रेस वे" परियोजना की घोषणा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा की गई और इसे ड्रीम प्रोजेक्ट बताकर 2013 के  विधानसभा के चुनाव में इसका बखूबी इस्तेमाल किया गया। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस "चंबल एक्सप्रेस वे" परियोजना के सपने दिखाए गए । फिर वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव मैं भी यह परियोजना चर्चा में रही। सन्  2019 में लोकसभा के चुनाव में इस परियोजना के नाम पर वोट बटोरने का कारोबार किया गया। लेकिन परियोजना पर कोई काम नहीं हुआ। बाद में इसका नाम बदलकर "अटल प्रोग्रेस वे " कर दिया गया। अभी हाल ही में गजट नोटिफिकेशन के द्वारा इस परियोजना को नोटिफाई किया गया है।आसन्न उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में इसका उपयोग किया जाना है। अभी तक स्थिति यह है  कि इस परियोजना की कोई डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) भी नहीं बनी है। डीपीआर बनेगी फिर उसको स्वीकृति प्रदान की जाएगी। जमीन अधिग्रहण की जाएगी। वन विभाग की जमीन जिससे एक्सप्रेस वे निकलेगी उससे स्वीकृति ली जाएगी। तत्पश्चात बजट स्वीकृत कर, एजेंसी निर्धारित कर, टेंडर प्रक्रिया शुरू कर, निर्माण की कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन अभी तक केवल बायदे, घोषणाएं ,जुमलेबाजी ही जारी है।जिसमें भाजपा को महारत हासिल है । वैसे यह परियोजना चंबल के बीहड़ की बेशकीमती तीन लाख हेक्टेयर जमीन को लूटने की परियोजना के अलावा कुछ नहीं है । इस जमीन को औद्योगिक गतिविधियों के नाम पर, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने के लिए विभिन्न गतिविधियों के नाम पर, कॉरपोरेट्स कंपनियों को सौंपने की तैयारी है।

मुरैना में पहले से ही 552 नंबर राष्ट्रीय हाईवे बना हुआ है।  चम्बल नहर के किनारे सीमेंट कंक्रीट की रोड निर्मित है। उसके बाद भी यह एक्सप्रेस वे केवल चंबल की जमीन तक आसान पहुंच बनाने के लिए और उसे कॉरपोरेट्स को सौंपने की तैयारी के अलावा कुछ नहीं है।

अटल प्रोगेस वे की स्थिति - अटल प्रोग्रेस वे उत्तर प्रदेश के झांसी से लेकर राजस्थान के कोटा को जोड़ने की सड़क है। यह मध्यप्रदेश में भिंड, मुरैना और श्योपुर कलां 3 जिलों को जोड़ती है। जिनके बीच 312 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण होगा। कुल सड़क की लंबाई 404 किलोमीटर होगी। मुरैना जिले में यह सड़क 120 किलोमीटर की लंबाई में बनेगी। तीनों जिलों के लगभग 152 गांव प्रोग्रेस वै से जुड़ेंगे। जिसमें श्योपुर के 36 ,वीरपुर के 19, मुरैना के 11, जोरा के 18, सबलगढ़ के 21, अंबाह के 6, पोरसा के 16, तथा अटेर के 25 गांव इस प्रोजेक्ट से सीधे जुड़ेंगे। इस परियोजना की लागत लगभग ₹ 7000 करोड़ रुपए होगी। इसके लिए पूंजी सात विभिन्न पैकेजों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। अटल प्रोग्रेस वे के लिए 2771 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। जिसमें 1523 हेक्टेयर जमीन सरकारी है, 1248 हेक्टेयर निजी भूमि है। जिसका अगले 3 माह में अधिग्रहण करने की योजना बताई जाती है। इसके अलावा  284 हेक्टेयर वन भूमि है जिसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी है । सरकार के अनुसार इसके दोनों ओर हाई पोटेंशियल इंडस्ट्रियल हब, फूड प्रोसेसिंग व अन्य औद्योगिक इकाइयां/ प्लांट लगाए जाएंगे। प्रोग्रेस वे के आसपास इंडस्ट्रियल कॉरिडोर भी बनाया जाएगा। अभी-अभी इस परियोजना को भारत माला प्रोजेक्ट फेज 1 में शामिल किया गया है। इसे ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस वे के रूप में विकसित किया जाना है। इसकी निर्माण एजेंसी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ऑफ इंडिया बनाई गई है। मध्य प्रदेश सरकार ने चंबल नदी के किनारे बनाए जाने वाले इस प्रोग्रेस वे में औद्योगिक , व्यवसायिक एवं अन्य प्रकार की गतिविधियों में निवेश आमंत्रित करने की तैयारी कर रखी है। एक्सप्रेस वे में लगने वाली जमीन राज्य सरकार अपने व्यय पर उपलब्ध कराएगी। मुख्य मुद्दा चंबल के बीहड़ की जमीन का ही है। जिसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे। 

चंबल के बीहड़ की जमीन कॉरपोरेट्स कंपनियों के बजाय किसानों को दी जाए।

सन 2008 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह ने यह घोषणा की, कि हमारी सरकार की यह नीति है कि कंपनियां जिस जमीन पर उंगली रख देंगी वह जमीन उन्हें आवंटित की जाएगी। तत्समय भी मध्य प्रदेश किसान सभा के नेतृत्व में किसानों ने इसका पुरजोर विरोध किया। चंबल के बीहड़ में 10 हजार हेक्टेयर जमीन पांच कॉर्पोरेट कंपनियों को आवंटित की गई। जिसके विरोध में किसानों ने जबरदस्त आंदोलन किए। उन कंपनियों को बीहड़ की जमीन पर काबिज नहीं होने दिया। अंतत: उनके पट्टे निरस्त हुए। अब पुनः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह एवं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चंबल के बीहड़ की 3 लाख हेक्टेयर जमीन में से ज्यादातर जमीन को कॉरपोरेट कंपनियों को देने पर आमादा है।चंबल के बीहड़ में आसान पहुंच बनाने के लिए ही अटल प्रोग्रेस वे के नाम से हाईवे स्वीकृत किया गया है। इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा जमीन का है। सड़क निर्माण के लिए जो जमीन अधिकृत होना है। उसमें निजी भूमि 1248 हेक्टेयर है जो लगभग 10 हजार किसान परिवारों की है। इनको भी प्रदेश सरकार भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अनुसार मुआवजा बाजार मूल्य से 3 गुना / 5 गुना देने को तैयार नहीं है। बल्कि जमीन के बदले जमीन देने की बात की जा रही है। कितनी दी जाएगी, कहां दी जाएगी यह भी स्पष्ट नहीं है। विधानसभा के उपचुनाव में ग्वालियर में मुख्यमंत्री ने अटल प्रोग्रेस वे के लिए चंबल के बीहड़ में जमीन अधिग्रहण होने के बदले, दुगनी जमीन देने की घोषणा की थी। कितनी जमीन मिलेगी कहां मिलेगी इस संबंध में सरकार की तरफ से अभी कोई स्पष्ट आदेश / निर्देश नहीं दिए गए हैं। जमीन के बदले मुआवजा 3 से 5 गुना देने का उल्लेख भूमि अधिग्रहण कानून में है। लेकिन जमीन के बदले जमीन किस कानून के अंतर्गत दी जाएगी, यह स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा लगभग 50 हजार किसान परिवार ऐसे हैं जो  भिंड, मुरैना,श्योपुर कलां जिले में पीढ़ियों से चम्बल बीहड़ की जमीन को समतल बनाकर काश्तकारी कर रहे हैं। उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई साधन नहीं है। जिले में कोई उद्योग धंधे भी नहीं है। जिससे वह अपना जीवन बसर कर सकें। उन किसान परिवारों का न तो सर्वे किया गया है और नहीं सर्वे करने और उन्हें राहत देने , जमीन देने की सरकार के पास कोई योजना है । यह किसानों पर अमानवीय और नृशंस हमला है। जिससे लोग बेमौत भुखमरी का शिकार होकर मारे जाएंगे। लेकिन सरकार इनके पृति कतई संवेदनशील नहीं है। चंबल के किनारे से 1 किलोमीटर चंबल अभ्यारण की जमीन को छोड़कर और उसके बाद 1 किलोमीटर ओर बीहड़ की जमीन को औद्योगिक व अन्य गतिविधियों के लिए छोड़कर,  प्रोग्रेस वे बनाया जाएगा। प्रोग्रेस वे के बाई और भी 1 किलोमीटर जमीन औद्योगिक व अन्य गतिविधियों के लिए रखी जाएगी । बीहड़ की चौड़ाई कई जगह इतनी ही है। कुछ जगह ज्यादा है, कहीं पर कम भी है। कुल मिलाकर इस परियोजना की आड़ में बीहड़ की पूरी जमीन को कब्जे में लेकर कॉरपोरेट्स को सोने की थाली में रखकर, प्रोग्रेस वे की मखमल से ढककर सौंपा जाएगा। किसानों के हजारों परिवार विस्थापित होंगें। जिनकी जमीन अधिग्रहित होगी उन्हें तो कुछ मिलेगा भी, लेकिन जो 50 हजार से ज्यादा परिवार ऐसे हैं, जिनका कहीं कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं है। वह विस्थापित तो होंगे, पर कहां जाएंगे, कहां रहेंगे, क्या करेंगे, कैसे जीवन बसर करेंगे इसके बारे में सरकार मौन धारण किए हुए हैं। मध्य प्रदेश किसान सभा ने यह मांग की है कि  भूमि स्वामी किसानों को उनकी सहमति से ही यदि वह जमीन के बदले मुआवजा चाहते हैं तो मुआवजा देकर  और जमीन के बदले दुगनी जमीन लेने में सहमत होते हैं तो जमीन देकर ही उन्हें विस्थापित किया जाए। लेकिन जो 50, हजार किसान परिवार पीढ़ियों से काबिज हैं। उनका सर्वे किया जाए उन्हें प्राथमिकता के आधार पर चंबल एक्सप्रेस वे के किनारे चंबल के बीहड़ की जमीन के पट्टे दिए जाए। शेष जमीन प्राथमिकता के आधार पर गरीब और भूमिहीन किसानों को ही दी जाए कॉरपोरेट्स को नहीं दी जाए। बीच-बीच में कुछ औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं।लेकिन वे आवश्यकतानुसार सीमित क्षेत्र में ही विकसित किए जाए। जिस तरह अन्य एक्सप्रेस वे बनाए गए हैं . उनके किनारे जिस तरह से जमीन निजी कॉरपोरेट्स को दी गई है उस तरह जमीन, चंबल के बीहड़  की कॉरपोरेट्स को नहीं दी जाए। प्राथमिकता के आधार पर किसानों को ही बिहड़ कीजमीन का आवंटन किया जाए ।

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