वैदिक विवाह में सप्तपदी का पालन स्वर्ग की कुंजी..आचार्य आनंद पुरुषार्थी
महरौनी(ललितपुर).. महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म के सही मर्म को युवा पीढ़ी से परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा पिछले एक वर्ष से आयोजित व्याख्यान माला में "आओ सात कदम चले" विषय पर अंतर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता आचार्य आनंद पुरुषार्थी ने कहा कि विवाह संस्कार जो मनु प्रोक्त सोलह संस्कारो में गर्भाधान,पुंसवन आदि से लेकर तेरहवा संस्कार हैं। जिसे गौभिल, पारसकर गृह्य सूत्रों में ज्येष्ठ श्रेष्ठ कहा गया हैं। विवाह एक उच्च कोटि का धार्मिक संबंध हैं। विवाह का अर्थ हैं,गृहस्थ के उत्तरादयित्यो को विशेष रूप से वहन करना,आगे ले जाना। इसमें वैदिक प्रक्रिया,विशेष स्थान रखती हैं।जबकि पौराणिक जगत में और आज के प्रचलन में विवाह सिर्फ दिखावा,और प्रदर्शन मात्र रह गया।
ऋषियों द्वारा बताए गए वैदिक विवाह में,सप्त पदी प्रमुख विधि हैं। इन सात कदम,चलने में बर बधु को यह बताया गया हैं। "मां सव्येंन दक्षिणमतिक्राम" हे बधु ! तू उल्टे पैर से सीधे पैर का उलंघन मत करना। अर्थात तुझे सीधे, सरल, मार्ग से चलना हैं। उल्टे मार्ग से नही,। क्या हैं सात पग का रहस्य, "ओम ईश एक पदी भव" अर्थात सब से पहले अन्न की प्राप्ति का उपाय करना,क्योंकि अन्न से परिवार अतिथि और सन्यासी सबकी सेवा तथा धर्म कार्य संभव हैं।
दूसरे स्थान पर कहा " तू मेरी अनुव्रता हो"; व्रत का अर्थ हैं सत्य और धर्मयुक्त नियम।
तीसरी बात धर्म पालन में परमात्मा तुम्हारी सहायता करे।चौथा हम दोनो मिलकर, बहुत अर्थात सबल, हृष्ट पुष्ट,दीर्घजीवी, और उत्तम श्रेष्ठ संतान,उत्पन्न करें।
आगे कहा की हमारी खाद्य सामग्री बल,पराक्रम और प्राण शक्ति,देने वाली हो।
गृहस्थ के लिए धन की महती आवश्यकता होती हैं,क्योंकि धन से ही धर्म का अनुष्ठान होता हैं,और सुख की प्राप्ति होती हैं। फिर कहा सुख गृहस्थ का प्राण हैं यदि गृहस्थ में सुख नही तो जीवन नर्क हैं। धन धान्य खूब हो सब प्रकार का ऐश्वर्य हो,परंतु संतान नही हैं,तो वह घर शमशान हैं। फिर कहा "ऋतुभ्य:" स्वास्थ्य रक्षा के लिए हमारे सभी कार्य,ऋतु के अनुकूल हो,और सप्तम पद में बताया "सखा" अर्थात हम दोनो आपस में मित्रता का व्यवहारं करेंगे। इन सात बातों के घर में होने से हमारे घर स्वर्ग बन जाते हैं।
अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर डॉक्टर व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक महामंत्री बिहार आर्य प्रतिनिधि सभा ने कहा कि महर्षि दयानंद ने संस्कार विधि में मनु का हवाला देते हुए कहा जिनको पुत्र की इच्छा हो वे छठी, आठवीं,दशमी, बारहवीं,चौदहवीं और सोलहवीं ये छै रात्रि ऋतुदान में उत्तम जाने,परंतु इनमे भी उत्तर उत्तर श्रेष्ठ हैं और जिनको कन्या की इच्छा होवे वे पांचवीं,सातवीं,नौवीं,और पंद्रहवी ये चार रात्रि उत्तम समझें। इससे पुत्रार्थी युग्म रात्रियों में ऋतुदान देवें। आगे कहा जो पूर्व निंदित आठ रात्रि कह आए हैं उनमें जो स्त्री का संघ छोड़ देता हैं,वह गृहस्थ आश्रम में बसता हुआ भी ब्रह्मचारी कहाता हैं।
सारस्वत अतिथि डॉक्टर विष्वमित्र आर्य संचालक शुभम नर्सिंग होम अलीगढ़,अरुण मलिक सेवानिवृत्त एजीएम रेलवे दिल्ली ने कहा कि सोलह संस्कारों में गृहस्थ आश्रम संस्कार मुख्य हैं।
सुमन लता सेन शिक्षिका ने ,"सच्चे शिव के खातिर,जिसने छोड़ दिया टंकारा,टक्कर ली तूफानों से,केवल था ओम सहारा"
वेदांशी आर्या ब्रह्मचारिणी श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल चोटीपुरा ने भजन " जिसके लिए इस देश की माएं गोद में लाल खिलाए समय वो आ गया हैं" दया आर्या हरियाणा ने भजन "एक बार भजन कर ले मुक्ति का यत्न कर ले"व्याखान माला में कपिल शर्मा बड़े बाबू जिल विद्यालय निरीक्षक ललितपुर,मनोहर लाल शर्मा बड़े बाबू गुरुकुल चोटीपुरा, रामकुमार सेन अजान ,बलराम सेन एडवोकेट ललितपुर,आराधना सिंह शिक्षिका, डॉक्टर वेद प्रकाश शर्मा बरेली,अनिल नरूला,प्रवीण गुप्ता भिलाई,चंद्रकांता आर्या,उर्मिल आर्या कानपुर,कमला हंस,सुरेश गौतम अमेरिका,विंदू मदान,ईश्वर देवी सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्य जन जुड़ रहें हैं।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रत्य ने जताया।